अमेरिका का सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर राष्ट्रपति की शक्तियों को बढ़ाने वाले अहम मुद्दे पर सुनवाई करने जा रहा है। यह मामला मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप के उस अधिकार से जुड़ा है, जिसके तहत वह स्वतंत्र एजेंसियों के अधिकारियों को अपनी मर्जी से हटा पा रहे हैं। अदालत का फैसला आया तो राष्ट्रपति की ताकत पहले से कहीं ज्यादा बढ़ सकती है।
सोमवार को होने वाली इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या 90 साल पुराना वह फैसला बदला जाए, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति स्वतंत्र एजेंसियों के प्रमुखों को बिना कारण नहीं हटा सकते। अब अदालत की रूढ़िवादी बहुमत वाली पीठ इस फैसले को पलटने की ओर झुकती दिख रही है। ट्रंप पहले ही कई एजेंसियों के अधिकारियों को हटा चुके हैं और अदालत ने भी ज्यादातर मामलों में उन्हें छूट दी है।
कैसे हुआ विवाद
मामला असल में फेडरल ट्रेड कमीशन (FTC) की सदस्य रेबेका स्लॉटर की बर्खास्तगी से जुड़ा है। यही एजेंसी 1935 के ऐतिहासिक फैसले में भी थी। उस समय अदालत ने कहा था कि राष्ट्रपति बिना कारण एजेंसी प्रमुखों को नहीं हटा सकते। इसी फैसले से अमेरिका में स्वतंत्र एजेंसियों के अधिकार मजबूत हुए थे। अब ट्रंप सरकार और उनके समर्थक इसे बदलना चाहते हैं और ‘यूनिटरी एग्जीक्यूटिव’ सिद्धांत को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसके तहत राष्ट्रपति को पूरा अधिकार मिल जाता है।
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अदालत के रुख पर सवाल
कानूनी विशेषज्ञों और इतिहासकारों का कहना है कि अदालत जिस तरह से राष्ट्रपति के हटाने के अधिकार को बढ़ा रही है, वह संविधान की मूल भावना से मेल नहीं खाता। वर्जीनिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केलिब नेल्सन ने कहा है कि संविधान के इतिहास में राष्ट्रपति को इतनी व्यापक शक्ति देने का आधार नहीं मिलता। कई इतिहासकारों ने अदालत को दस्तावेज भेजकर बताया है कि शुरुआती दौर में भी यह शक्ति सीमित थी। लेकिन कई विशेषज्ञों को उम्मीद नहीं है कि अदालत अपना रुख बदलेगी।
ट्रंप का रुख और कानूनी बहस
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि राष्ट्रपति देश चलाता है, इसलिए उसे किसी भी अधिकारी को हटाने का पूरा अधिकार होना चाहिए। उनका तर्क है कि पुराना फैसला गलत था और उसे खत्म कर देना चाहिए। वहीं दूसरी तरफ रेबेका स्लॉटर के वकील और इतिहासकारों का कहना है कि राष्ट्रपति की ताकत पर सीमाएं जरूरी हैं, ताकि एजेंसियों की स्वतंत्रता बनी रहे। अगर राष्ट्रपति किसी भी समय किसी को भी हटा सके, तो इन एजेंसियों का अस्तित्व ही कमजोर पड़ जाएगा।
इस मामले का असर फेडरल रिजर्व की गवर्नर लिसा कुक पर भी पड़ सकता है, जिन्हें हटाने में अदालत ने सावधानी बरती है। अदालत जनवरी में इस पर अलग सुनवाई करेगी कि क्या हटाए गए अधिकारी को दोबारा नियुक्त भी किया जा सकता है या सिर्फ मुआवजा मिलेगा। अदालत का अंतिम फैसला आने पर अमेरिका की प्रशासनिक व्यवस्था पर बड़ा असर पड़ेगा और राष्ट्रपति की शक्तियों का दायरा पहले से काफी बड़ा हो सकता है।
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